पिछले दशकों में हमने अधिक से अधिक कृषि उत्पादन प्राप्त करने के लिए रासायनिक खादों, कीटनाशकों आदि का अधिक से अधिक प्रयोग किया, इन रसायनों से हमें कृषि उत्पादन के क्षेत्र में आशा के अनुरूप सफलता भी प्राप्त हुई, किंतु अब इन्हीं रसायनों का दुष्प्रभाव मनुष्यों के स्वास्थ्य एवं मिट्टी पर साफ दिखाई देने लगा है l
अगर हम भारत की बात करें तो आजादी से पहले जो पारंपरिक खेती की जाती थी, वह जैविक खेती ही थी, जिसमें रसायनों के बिना फसलें उगाई जाती थी l खाद के रुप में गोबर का प्रयोग किया जाता था, किंतु आजादी के बाद भारत को कृषि उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर बनाने के लिए रसायनों तथा कीटनाशकों का अधिक से अधिक प्रयोग किया जाने लगा, जिसके परिणाम स्वरुप जैविक तथा अजैविक पदार्थों के चक्र का संतुलन बिगड़ता चला गया l
वर्तमान में मिट्टी की उर्वरा शक्ति तथा वातावरण को देखते हुए, यह आवश्यकता महसूस होने लगी है कि रासायनिक खादों एवं कीटनाशकों का प्रयोग हम कम से कम करें तथा जैविक खाद एवं जैविक दवाओं को प्रयोग में लाकर अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त किया जाए अर्थात जैविक खेती अपनाई जाए l
In the last decades, we used more and more chemical fertilizers, pesticides etc. to achieve greater agricultural production. With these chemicals, we got success in the field of agricultural production as expected, but now the side effects of these chemicals are affecting humans. It is clearly visible on health and soil.
If we talk about India, the traditional farming done before independence was only organic farming, in which crops were grown without chemicals. Cow dung was used as fertilizer, but after independence, India got agriculture. In order to become self-reliant in terms of production, chemicals and pesticides started being used more and more, as a result of which the balance of the cycle of organic and inorganic substances started deteriorating.
At present, considering the fertility of soil and environment, the need is being felt that we should minimize the use of chemical fertilizers and pesticides and maximum production should be achieved by using organic fertilizers and organic medicines, i.e. organic farming. should be adopted.
पाठ्यक्रम श्रोता
इंटरमीडिएट (कृषि) के छात्र
स्नातक (कृषि) के छात्र
Course Audience